खोरठा साहित्य के संवर्धन में विनय कुमार तिवारी का महत्वपूर्ण योगदान, तोपचांची में हुआ सम्मानित
तोपचांची (धनबाद) : झारखंड की लोकप्रिय भाषा खोरठा के साहित्यिक और सांस्कृतिक संवर्धन में उल्लेखनीय योगदान देने वाले सुप्रसिद्ध कवि, लेखक, गीतकार और कलाकार विनय कुमार तिवारी को अखिल भारतीय सांस्कृतिक विकास महासंघ, खूंटी (झारखंड) की ओर से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन धनबाद जिले के तोपचांची प्रखंड के डांगी पंचायत स्थित रोआम गांव में किया गया, जहां श्री तिवारी को प्रशस्ति पत्र, शाल और बुके देकर सम्मानित किया गया।
खोरठा भाषा को संवारने में तिवारी का अहम योगदान
इस अवसर पर आजसू पार्टी के जिला संगठन सचिव और सामाजिक कार्यकर्ता सदानंद महतो ने श्री तिवारी को बधाई दी और उनके कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा,
“खोरठा भाषा के प्रचार-प्रसार और संरक्षण में विनय कुमार तिवारी का योगदान पूरे झारखंड में अहम रहा है। उनकी रचनाएं न केवल भाषा को समृद्ध कर रही हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी अपनी मातृभाषा से जोड़ने का काम कर रही हैं।”
सम्मान समारोह में जुटे कई गणमान्य लोग
इस सम्मान समारोह में क्षेत्र के कई प्रतिष्ठित लोग मौजूद रहे, जिन्होंने विनय कुमार तिवारी को बधाई दी।
बधाई देने वालों में शामिल थे:रमेश भगत,सरयू प्रसाद महतो,नारायण रजवार,दुर्गा प्रसाद गोप,अमर भारती,गोपाल भारती,रामचंद्र ठाकुर,शंकर रवानी,ओम प्रकाश महतो,फारकेशवर महतो
विवेक महतो,संजय सिंहा,प्रकाश ठाकुर
खोरठा भाषा के विकास में और क्या किया जा सकता है?
विनय कुमार तिवारी जैसे साहित्यकारों के प्रयासों से खोरठा भाषा को नई पहचान मिल रही है। लेकिन इसे और आगे बढ़ाने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे।
1. खोरठा साहित्य को स्कूलों और विश्वविद्यालयों में स्थान देना
2. खोरठा भाषा में साहित्यिक पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन बढ़ाना
3. खोरठा में डिजिटल कंटेंट और सोशल मीडिया प्रचार को बढ़ावा देना
4. स्थानीय कलाकारों और साहित्यकारों को सरकारी मंचों पर स्थान देना
सम्मान मिलने पर विनय कुमार तिवारी ने कहा,
“यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि खोरठा भाषा और संस्कृति से जुड़े हर व्यक्ति का है। मैं खोरठा साहित्य के संवर्धन के लिए निरंतर प्रयास करता रहूंगा।”
विनय कुमार तिवारी जैसे साहित्यकारों के प्रयासों से झारखंड की लोकप्रिय भाषा खोरठा को नई पहचान मिल रही है। यह सम्मान न केवल उनकी साहित्यिक सेवाओं का मूल्यांकन है, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी एक प्रेरणा है कि वे अपनी मातृभाषा और सांस्कृतिक विरासत को संभालकर रखें।