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सोनोत संथाल समाज ने धूमधाम से मनाया दिशोम बाहा महोत्सव, सांस्कृतिक उत्सव में झलकी आदिवासी पहचान

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धनबाद, झारखंड – सोनोत संथाल समाज केंद्रीय समिति की ओर से इस वर्ष भी पारंपरिक उल्लास और श्रद्धा के साथ दिशोम बाहा महोत्सव का आयोजन दिशोम जाहेर थान प्रांगण में किया गया। यह महोत्सव संथाल आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का जीवंत उदाहरण है, जिसे बड़ी संख्या में समुदाय के सदस्यों और अन्य आम नागरिकों की भागीदारी से और भी भव्य बनाया गया।

पूजा-अर्चना और परंपरा की शुरुआत

कार्यक्रम की शुरुआत दिशोम नायकी नरेश कुमार टुडू द्वारा की गई, जिन्होंने जाहेर आयो और मारांग बुरु की पूजा विधिवत सखुआ फूल चढ़ाकर की। इस अवसर पर खिचड़ी भोग को प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों के बीच वितरित किया गया, जो पारंपरिक आदिवासी आस्था और समरसता का प्रतीक माना जाता है।

सांस्कृतिक नृत्य दलों ने बढ़ाई शोभा

महोत्सव की शोभा बढ़ाने के लिए जिले के विभिन्न क्षेत्रों से कई सांस्कृतिक नृत्य दल पहुंचे। रंग-बिरंगे परिधानों में सजे कलाकारों ने पारंपरिक संथाली नृत्य प्रस्तुत कर उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया। नृत्य दल अखाड़ा का उद्घाटन केंद्रीय संयोजक व वरीय नेता रमेश टुडू ने फीता काट कर किया।

समाज के प्रमुखों की गरिमामयी उपस्थिति

इस भव्य आयोजन में कई महत्वपूर्ण समाजसेवी और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। इनमें हीरापुर मांझी रामकिशुन टुडू, दामोदरपुर मांझी वकील हांसदा, मुखिया प्रतिनिधि सुनीज़न हांसदा, अनिल टुडू, लालमोहन हांसदा, विकास हांसदा, उपेन्द्र टुडू, सुभाष टुडू, निर्मल हेम्ब्रम, नागेन्द्र टुडू, एक्सप्रेस हांसदा, बिजय टुडू, रवि शंकर, विजय हांसदा और साजिश हेम्ब्रम प्रमुख रहे।

बाहा पर्व: प्रकृति और संस्कृति का संदेशवाहक

महोत्सव के दौरान समाज के वरीय नेता रमेश टुडू ने कहा, “बाहा पर्व संथाल समाज का एक महान त्योहार है, जो प्रकृति पूजन और नव-सृजन का प्रतीक है।” उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति को देवी-देवता मानता है, और आज के समय में जब पर्यावरण असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में आदिवासियों की जीवनशैली और मान्यताओं से प्रेरणा लेकर पर्यावरण की रक्षा की जानी चाहिए।

उन्होंने सरकारों से आग्रह किया कि आदिवासी समाज और प्रकृति को संरक्षित किया जाए, ताकि आने वाले पर्यावरणीय संकटों से बचा जा सके। उन्होंने बाहा पर्व को केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक चेतना का उत्सव बताया, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य करता है।

दिशोम बाहा महोत्सव, केवल एक पर्व नहीं बल्कि संथाल समाज की जीवंत सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन था, बल्कि सामाजिक एकता, पारंपरिक धरोहर और प्रकृति के प्रति आदरभाव को भी उजागर करता है। ऐसे आयोजन न सिर्फ संस्कृति को जीवित रखते हैं, बल्कि समाज को भी संगठित और जागरूक बनाते हैं।

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