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कोयला डीओ होल्डर कन्हाई चौहान ने लगाया 1600 रुपये प्रति टन रंगदारी वसूली का गंभीर आरोप, सांसद-विधायक समेत बीसीसीएल अधिकारियों को घेरा

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धनबाद, झारखंड – बीसीसीएल एरिया-1 के मुराईडीह शताब्दी लोडिंग प्वाइंट को लेकर शनिवार को एक बड़ा आरोप सामने आया है। बाघमारा निवासी कोयला डीओ होल्डर कन्हाई चौहान ने एक प्रेस वार्ता कर धनबाद सांसद ढुल्लू महतो, बाघमारा विधायक शत्रुध्न महतो, बीसीसीएल के जीएम पियूष किशोर और पीओ काजल सरकार पर 1600 रुपये प्रति टन की अवैध वसूली (रंगदारी) का संगीन आरोप लगाया है।

गांधी सेवा सदन में की प्रेस वार्ता, समर्थकों के साथ जताया विरोध

कन्हाई चौहान ने अपने दर्जनों समर्थकों के साथ धनबाद के गांधी सेवा सदन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह सनसनीखेज खुलासा किया। उन्होंने कहा कि उन्हें लोडिंग के लिए मजदूरों को 400 रुपये प्रति टन देना होता है, लेकिन सांसद, विधायक और बीसीसीएल अधिकारियों की मिलीभगत से 1600 रुपये प्रति टन वसूले जा रहे हैं। इस अवैध वसूली का विरोध करने पर पिछले 15 दिनों से उनकी गाड़ियों को जानबूझकर लोड नहीं किया जा रहा है, जबकि रंगदारी देने वाले अन्य लोगों की गाड़ियों को प्राथमिकता दी जा रही है।

सीएम, कोयला सचिव और डीजीपी को भेजा शिकायती पत्र

कन्हाई चौहान ने इस पूरे मामले की शिकायत झारखंड के मुख्यमंत्री, कोयला सचिव और राज्य के डीजीपी को पत्र के माध्यम से की है। उन्होंने मांग की है कि इस संगठित वसूली रैकेट की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए ताकि कोयला व्यापारियों का शोषण रोका जा सके।

चिटाही में कोयला चोरी का भी लगाया आरोप

चौहान ने प्रेस वार्ता के दौरान यह भी खुलासा किया कि चिटाही क्षेत्र में प्रतिदिन रात के अंधेरे में बड़े पैमाने पर कोयले की चोरी हो रही है, जिसमें स्थानीय प्रशासन और बीसीसीएल के कुछ कर्मचारी संलिप्त हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस पर भी जांच और कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि इससे सरकार को राजस्व की भारी क्षति हो रही है।

प्रशासनिक चुप्पी पर उठाए सवाल

कन्हाई चौहान ने यह भी सवाल उठाया कि जब सारी गतिविधियाँ सार्वजनिक रूप से हो रही हैं, तो प्रशासन और पुलिस चुप क्यों है? उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कोल माफिया और राजनेताओं की सांठगांठ से ईमानदारी से व्यवसाय करने वालों को परेशान किया जा रहा है।

कन्हाई चौहान द्वारा लगाए गए आरोप न केवल कोयला उद्योग में फैले कथित भ्रष्टाचार और माफियागिरी को उजागर करते हैं, बल्कि प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता पर भी गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार और प्रशासन इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं, और क्या कोयला व्यापार में पारदर्शिता बहाल की जा सकेगी या यह मुद्दा भी राजनीतिक गलियारों में दब कर रह जाएगा।

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