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धनबाद में कोयले का काला कारोबार: कानून की आंखों में धूल झोंकता अवैध सम्राज्य

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कन्हैया कुमार/धनबाद

DHANBAD NEWS

धनबाद, जिसे देश की “कोयला राजधानी” के नाम से जाना जाता है, आजकल एक गंभीर और जटिल समस्या से जूझ रहा है—यहां का कोयला, जो देश के कई बड़े पावर प्लांटों और औद्योगिक इकाइयों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता है, अवैध कारोबारियों की गिरफ्त में है। एक तरफ जहां बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) और सीआईएसएफ जैसे संस्थान कोयले की सुरक्षित और वैधानिक खनन व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इलाके में अवैध कोयला माफियाओं ने समानांतर साम्राज्य खड़ा कर लिया है।

बाघमारा और महुदा: कोयला चोरों का गढ़

धनबाद के बाघमारा अनुमंडल अंतर्गत महुदा थाना क्षेत्र, खासतौर पर महुदा, भाटडीह, नगदा इलाके, अवैध कोयला खनन के केंद्र बन चुके हैं। इन क्षेत्रों में बंद पड़ी कोयला खदानों से बड़े पैमाने पर अवैध रूप से कोयला निकाला जा रहा है। माफिया गिरोह खुलेआम बिना किसी डर के मुहाने खोल कर कोयला निकाल रहे हैं और उसे पास के भट्टों या फिर सीधे नेशनल हाईवे पर खड़े ट्रकों के जरिए बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश की मंडियों तक पहुंचाया जा रहा है।

फर्जी दस्तावेजों के सहारे कोयले की तस्करी

इस काले कारोबार को “डिस्को पेपर” नामक फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से वैध रूप देने की कोशिश की जाती है। इन कागजातों के आधार पर कोयले को ट्रकों में लादकर हर रोज सैकड़ों टन की मात्रा में राज्य की सीमा से बाहर भेजा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, प्रति टन कोयला 5000 से 6000 रुपये में बेचा जा रहा है, वहीं एक गाड़ी के लिए फर्जी कागजात तैयार करने का चार्ज 35 हजार रुपये तक लिया जा रहा है।

प्रशासन की असफलता और मिलीभगत के आरोप

स्थानीय प्रशासन और पुलिस इस पूरे मामले में लगभग निष्क्रिय नजर आ रही है। समय-समय पर बीसीसीएल के वरीय अधिकारियों द्वारा सीआईएसएफ की मदद से छापेमारी की जाती है, लेकिन इससे स्थायी समाधान नहीं निकलता। जैसे ही एक स्थान पर कार्रवाई होती है, वैसे ही माफिया नया ठिकाना बना कर दोबारा काम शुरू कर देते हैं। यह स्पष्ट संकेत देता है कि स्थानीय स्तर पर कहीं न कहीं प्रशासनिक और पुलिसिया संरक्षण भी इन माफियाओं को प्राप्त है।

मजदूरों की मौत और मानवीय संकट

इस काले खेल में सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं गरीब और बेरोजगार मजदूर, जिन्हें मामूली पैसे का लालच देकर बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के खदानों में उतारा जाता है। कई बार खदानों में चाल धसने की घटनाएं हुई हैं, जिनमें मजदूरों की मौत हो चुकी है, लेकिन न तो उनके परिवारों को मुआवजा मिलता है और न ही प्रशासन दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई करता है। यह न सिर्फ मानवीय अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि एक सामाजिक त्रासदी भी है।

कोयला तस्करी और राष्ट्रीय संपत्ति की लूट

अवैध खनन और तस्करी से एक तरफ जहां सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की बहुमूल्य खनिज संपदा की खुली लूट हो रही है। विडंबना यह है कि कई बड़ी कंपनियां वैध रूप से कोयला पाने के लिए महीनों इंतजार करती हैं, जबकि ये अवैध कारोबारी तत्काल कोयला उपलब्ध करवा देते हैं। इससे न केवल वैधानिक खनन व्यवस्था पर असर पड़ता है, बल्कि देश की ऊर्जा नीति पर भी सवाल खड़े होते हैं।

केंद्रीय जांच की आवश्यकता

इस पूरे मामले की तह तक पहुंचने के लिए केंद्रीय एजेंसियों द्वारा निष्पक्ष और गहन जांच की आवश्यकता है। अगर सीबीआई या ईडी जैसी एजेंसियां इस घोटाले की जांच करें तो कई राजनीतिक और प्रशासनिक चेहरों की संलिप्तता उजागर हो सकती है। यह सिर्फ अवैध खनन का मामला नहीं, बल्कि एक संगठित आर्थिक अपराध है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास दोनों के लिए खतरा है।

कब लगेगा इस खेल पर विराम?

धनबाद का कोयला देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, लेकिन अगर इसे इसी तरह अवैध कारोबारियों के हाथों लुटने दिया गया तो न केवल राज्य की छवि धूमिल होगी बल्कि देश की ऊर्जा सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। अब समय आ गया है कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार और संबंधित एजेंसियां मिलकर इस अवैध गतिविधि पर नकेल कसें, ताकि “कोयला राजधानी” की साख और सुरक्षा दोनों को बरकरार रखा जा सके।

(धनबाद से The Times Net के लिए कन्हैया कुमार की विशेष रिपोर्ट)

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