आदि शक्ति मां कामाख्या धाम: पूर्वांचल की आस्था का केंद्र
गाजीपुर( उ प्र):- एशिया के सबसे बड़े गांवों में से एक गहमर में स्थित आदि शक्ति मां कामाख्या धाम पूर्वांचल के लोगों के आस्था और विश्वास का केंद्र है। इस पवित्र स्थल का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है और शक्ति पीठों में इसकी अलग मान्यता है। चैत्र नवरात्र के पावन अवसर पर यहां श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा है। माता के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार सहित अन्य राज्यों से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं।
नवरात्र में भक्तों की उमड़ी भीड़
चैत्र नवरात्र के दौरान यह मंदिर विशेष रूप से भव्य और दिव्य रूप धारण कर लेता है। नवरात्र की अष्टमी तिथि पर यहां महानिशा आरती का आयोजन किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश और बिहार के हजारों भक्तों ने भाग लिया। यह आरती रात्रि 12 बजे संपन्न हुई और भक्तों ने माता के जयकारों से पूरे मंदिर परिसर को गूंजायमान कर दिया।
मंदिर परिसर में भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं, जो माता के दर्शन के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। यहां मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु जोड़ा नारियल चढ़ाता है, उसकी संतान संबंधी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। यह आस्था ही है जो हर वर्ष यहां लाखों भक्तों को खींच लाती है।
पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
मां कामाख्या धाम का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और किंवदंतियों में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां महर्षि जमदग्नि और विश्वामित्र जैसे ऋषि-मुनियों का सत्संग और तपस्या हुआ करती थी।
महर्षि विश्वामित्र ने इस पावन स्थल पर एक महायज्ञ किया था, जिससे इस भूमि की आध्यात्मिक महत्ता और अधिक बढ़ गई। इसी स्थान से आगे बढ़कर भगवान श्रीराम ने बक्सर में ताड़का राक्षसी का वध किया था। इस प्रकार, यह मंदिर न केवल शक्ति साधना का केंद्र है, बल्कि यह रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है।
मंदिर की स्थापना और पुनर्निर्माण
मां कामाख्या धाम का इतिहास भी अत्यंत रोचक है। पूर्वकाल में फतेहपुर सिकरी के सिकरवार राजकुल के पितामह खाबड़ जी महाराज ने कामगिरी पर्वत पर जाकर मां कामाख्या की कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां कामाख्या ने सिकरवार वंश की रक्षा करने का आशीर्वाद दिया था।
वर्ष 1840 तक इस मंदिर में खंडित मूर्तियों की पूजा की जाती थी। लेकिन 1841 में गहमर के स्वर्णकार तेजमन ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर इस मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। इसके बाद मंदिर का विस्तार हुआ और यहां मां कामाख्या सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गईं।
नवरात्र में विशेष आयोजन और श्रद्धालुओं की आस्था
शारदीय और वासंतिक नवरात्र के अवसर पर यह मंदिर विशेष रूप से सजा-धजा रहता है। चैत्र नवरात्र के दौरान यहां हर दिन मां की विशेष आरती, हवन, दुर्गा सप्तशती पाठ और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
मंदिर में भक्तों के लिए विशेष भंडारे और प्रसाद वितरण की भी व्यवस्था की जाती है। श्रद्धालु सुबह और शाम की आरती में भाग लेते हैं और मां से अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां के दरबार में आता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता और उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर की भव्यता और आर्किटेक्चर
मां कामाख्या धाम मंदिर की वास्तुकला भी अद्भुत है। इसका निर्माण पूरी तरह से प्राचीन शैली में किया गया है, जिसमें मुख्य गर्भगृह में मां कामाख्या की दिव्य मूर्ति विराजमान है। गर्भगृह के चारों ओर भव्य स्तंभ और नक्काशीदार दीवारें हैं, जो इसकी ऐतिहासिकता को दर्शाती हैं।
मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थापित हैं, जहां श्रद्धालु विशेष पूजा करते हैं। मंदिर के चारों ओर एक विशाल प्रांगण है, जहां श्रद्धालु बैठकर ध्यान और साधना करते हैं।
चमत्कारिक मान्यताएं और श्रद्धालुओं की अनुभूतियां
मां कामाख्या धाम को लेकर कई चमत्कारिक मान्यताएं प्रचलित हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि मां कामाख्या के आशीर्वाद से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं।
भक्तों का कहना है कि यहां माता की चमत्कारी शक्ति का अनुभव कई बार किया गया है। यहां जो भी श्रद्धालु नवरात्र के दौरान सच्चे मन से माता का ध्यान करता है, उसे अवश्य ही फल की प्राप्ति होती है।
मां कामाख्या धाम की बढ़ती लोकप्रियता
आज मां कामाख्या धाम न केवल उत्तर प्रदेश और बिहार में, बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध हो रहा है। सोशल मीडिया और डिजिटल युग में इस मंदिर की महिमा की जानकारी तेजी से फैल रही है।
हर वर्ष यहां आने वाले भक्तों की संख्या में इजाफा हो रहा है और सरकार भी इस धार्मिक स्थल के विकास के लिए योजनाएं बना रही है। मंदिर प्रबंधन भी श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए लगातार विकास कार्य कर रहा है।
कैसे पहुंचे मां कामाख्या धाम?
रेल मार्ग: गहमर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी मात्र 2 किमी है। यहां से श्रद्धालु पैदल या ऑटो द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग: वाराणसी, बक्सर और गाजीपुर से गहमर तक नियमित बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
हवाई मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा वाराणसी (बाबतपुर) है, जहां से गहमर तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
मां कामाख्या धाम गहमर केवल एक मंदिर ही नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही एक आध्यात्मिक परंपरा और शक्ति उपासना का केंद्र है। इसकी पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता इसे पूर्वांचल के सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में स्थान दिलाती है।
चैत्र नवरात्र के दौरान यहां उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ यह दर्शाती है कि यह धाम सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और भक्ति का प्रतीक भी है। मां कामाख्या की कृपा हर भक्त पर बनी रहे और यह धाम आगे भी श्रद्धालुओं को अपनी दिव्य शक्ति का अनुभव कराता रहे।