अमीर बनने का शॉर्टकट: लॉटरी बाबाओं का चमत्कार!
KANHAIYA KUMAR/9560160137
धनबाद। गरीब अमीर बनने का सपना देखे, मध्यमवर्ग चांदी का सिक्का ढूंढे और रिक्शा चालक अपनी पसीने की कमाई से करोड़पति बनने की सोच ले – इससे ज़्यादा लोकतांत्रिक सपने और कहाँ मिलेंगे? झारखंड में जहाँ कानून कहता है कि लॉटरी पूर्णतः बंद है, वहीं कोयलांचल की सड़कों पर लॉटरी ऐसे बिक रही है जैसे सब्ज़ी मंडी में आलू-टमाटर। फर्क बस इतना है कि आलू-टमाटर खाने के काम आते हैं और यह लॉटरी पेट काटने के काम आती है।
झुनू-झुनू वाला: सपनों का सौदागर
धनबाद की इस रंगीन मंडी का नया हीरो है झुनू-झुनू वाला। नाम में ही इतना संगीत है कि आदमी सुनते ही खिंचा चला जाए। सुना है कि बिहार के रोहतास जिले की पुलिस जबसे इसे ढूंढ रही है, तबसे इसने धनबाद को अपना दूसरा ‘मायका’ बना लिया है। यहाँ यह किसी बॉलीवुड स्टार की तरह ‘अंडरकवर’ रह रहा है और उसका नेटवर्क जिले के कोने-कोने में ‘भाग्य का टिकट’ बेच रहा है।
अब सोचिए, किस्मत बदलने के टिकट! लोग ट्रेन का टिकट कटाने में हिचकिचाते हैं लेकिन लॉटरी का टिकट ऐसे खरीदते हैं जैसे च्युइंगगम।
मध्यम वर्ग का नया टाइमपास
सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस धंधे का शिकार वही लोग हो रहे हैं जिनके पास दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के बाद बचा-खुचा पैसा होता है।
दुकानदार सोचते हैं, “आज बिक्री कम हुई है, चलो टिकट ले लेते हैं, कल दुकान की किस्मत खुल जाएगी।”
रिक्शा चालक उम्मीद करता है, “सारा दिन पैडल मारा, अब तो भगवान पैसों की बारिश कर दे।”
मजदूर भाई सोचते हैं, “पसीना बहा-बहाकर क्या होगा? एक टिकट से ही किस्मत बदल जाएगी।”
लेकिन किस्मत बदलती कहाँ है! अगले दिन वही रिक्शा फिर से सड़क पर, वही मजदूर फिर से ईंट उठाते हुए और दुकानदार फिर से ग्राहक को उधार में सामान देते हुए। फर्क सिर्फ इतना कि जेब में छेद और बड़ा हो जाता है।
चौक-चौराहों पर किस्मत की दुकान
धनबाद के चौक से लेकर छोटे-छोटे मोहल्लों तक, हर जगह यह टिकट आसानी से मिल जाएगा।
जनता का गुस्सा – एक दिन की आतिशबाज़ी
24 मई को जनता का गुस्सा आखिरकार फूट पड़ा। बड़ी संख्या में महिला, पुरुष और यहां तक कि बच्चे भी सड़कों पर उतर आए। नारे लगे, प्रदर्शन हुआ, रणधीर वर्मा चौक पर धरना भी दिया गया। दृश्य बिल्कुल वैसा था जैसे लोग महंगाई, बेरोजगारी या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हों। लेकिन असल में लड़ाई थी “लॉटरी की लत” के खिलाफ।
धरना-प्रदर्शन देखकर ऐसा लगा मानो अब जिला प्रशासन के कानों में घंटी बज चुकी है। लेकिन घंटी भी ऐसी जो बजी तो सही, पर आवाज़ सीधे ‘म्यूट मोड’ पर चली गई।
प्रशासन का “कर्मयोग”
धरना खत्म हुआ, भीड़ घर गई और अगले ही दिन लॉटरी की दुकानें फिर खुल गईं। प्रशासन का जवाब – “जांच चल रही है”।
जांच कब खत्म होगी, ये पूछने की हिम्मत कोई नहीं करता। क्योंकि यहाँ जांच का मतलब होता है – जब तक जनता का गुस्सा ठंडा न हो जाए, तब तक फाइलें टेबल पर घूमती रहें।
गरीब की जेब – अमीर का सपना
लॉटरी का असली कमाल यही है कि यह गरीब की जेब से पैसा निकालकर अमीर के सपनों को मजबूत करती है। बेचारे लोग सोचते हैं कि “आज टिकट लिया, कल करोड़पति बनूंगा।” लेकिन सच तो यह है कि कल फिर वही गरीबी और ऊपर से कर्ज का बोझ।
झुनू-झुनू वाले और उसके जैसे सौदागर हंसते होंगे कि देखो, बिना हथियार के भी गरीबों को लूटने का कितना अच्छा तरीका है। न पुलिस की चिंता, न कानून का डर – सब खुला खेल फर्रुखाबादी।
धनबाद की सड़कों पर अगर आप निकलें तो आपको दो किस्म के लोग मिलेंगे –
1. लॉटरी बेचने वाले जो कहते हैं, “भैया एक टिकट ले लो, किस्मत चमक जाएगी।”
2. लॉटरी खरीदने वाले जो कहते हैं, “भैया एक टिकट दे दो, किस्मत खराब है शायद अब सुधर जाए।”
किस्मत की लूट
धनबाद में लॉटरी का धंधा वैसा ही है जैसे मच्छर – जिसे मारने के लिए स्प्रे भी डालो तो वह और ताकतवर होकर गुनगुनाने लगता है। जनता ने आवाज़ उठाई, प्रदर्शन किया, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं।
लोग अब भी अपनी गाढ़ी कमाई टिकटों पर लुटा रहे हैं, और झुनू-झुनू वाला और उसका नेटवर्क नोटों की गिनती कर रहा है।
बहरहाल, अब देखना यह है कि प्रशासन वाकई में कार्रवाई करता है या फिर “किस्मत का खेल” खेलते हुए जनता को अपने हाल पर छोड़ देता है।